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कैसे तोड़ें गरीबी का चक्रव्यूह

Writer: P K KhuranaP K Khurana

Updated: Dec 24, 2020

पश्चिमी देशों की कथा-कहानियों का एक प्रसिद्ध पात्र राबिनहुड है जो समृद्ध लोगों की संपदा लूटकर गरीबों में बांट देता था। कुछ दशक पहले तक भारतवर्ष में भी ऐसी फिल्मों का बोलबाला रहा है। भारतीय फिल्मों में हीरो अगर डाकू होता था तो वह गरीबों का हमदर्द और अमीरों के लिए यमराज होता था। आम जनता में ऐसी फिल्में खूब लोकप्रिय होती थीं क्योंकि अभावों से ग्रस्त आमजन को ऐसे डाकू में भी अपना मसीहा नज़र आता था। हाल ही में मैं एक टीवी चैनल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में निमंत्रित था, जहां इंग्लैंड में बसे एक भारतीय विद्वान ने कहा कि भ्रष्टाचार के प्रति हमारा विरोध दिखावा है, वस्तुत: हम लोगों ने तो रिश्वत को भी धर्म का हिस्सा बना लिया है। उन्होंने कहा कि हम हमेशा भगवान से कुछ न कुछ मांगते रहते हैं और बदले में उन्हें कुछ चढ़ावा चढ़ाते हैं। "हे भगवान, मेरे बेटे की नौकरी लग जाए तो चांदी का मुकुट चढ़ाउंगा" जैसी मन्नतें भारतवर्ष में आम हैं।

उपरोक्त दो उदाहरणों का आशय यह है कि हम कहीं न कहीं खुद पर और अपनी काबलियत पर अविश्वास करते हैं और अपनी उन्नति के लिए भगवान या किसी ऐसे दयावान व्यक्ति का सहारा चाहते हैं जो दूसरों का धन हमें बांट दे। धार्मिक होना, आध्यात्मिक होना, भगवान पर विश्वास करना एक अलग बात है पर अपनी सफलता को राम-भरोसे छोड़ देना एक बिलकुल अलग बात है। इसी तरह से किसी अमीर व्यक्ति की मेहनत से बनी संपत्ति को लूटकर गरीबों में बांटने वाला न केवल खुद एक लुटेरा है बल्कि वह गरीबों को मेहनत का नहीं, आलस्य और बेईमानी का पाठ पढ़ाता है। गरीबों का असली हमदर्द वह नहीं है जो अमीरों की संपत्ति लूटकर गरीबों में बांटे, बल्कि वह होना चाहिए जो उन्हें गरीबी के दुष्चक्र से निकाल कर अमीर बनने का रास्ता दिखाये।

गरीबी के विरुद्ध अभियान के प्रयास में हमारे शिक्षण संस्थान "दि ग्रोथ स्कूल" ने एक सर्वेक्षण किया जिसके परिणाम हमें एक नई दिशा देने में समर्थ हैं। अध्ययन में पाया गया कि गरीबी से बचने के लिए सिर्फ शिक्षित होना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए विशिष्ट किस्म की आर्थिक शिक्षा की आवश्यकता है। यह आर्थिक शिक्षा एकाउंटेंसी या शेयरों और म्यूचुअल फंडों में निवश की शिक्षा नहीं है। यह आर्थिक शिक्षा एक विशेष किस्म की मानसिक शिक्षा है या मानसिक यात्रा है जो किसी व्यक्ति को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाल सकती है। गरीबी से पार पाने के कुछ निश्चित नियम हैं और इन नियमों का पालन करके कोई भी व्यक्ति गरीबी से छुटकारा पा सकता है। इन नियमों का पालन किसी साधना की तरह कठिन भी है और लंबे समय तक चलने वाला भी, पर गरीबी से पार पाने का यह एक जांचा-परखा उपाय है। हमने ऐसे 100 से भी अधिक व्यक्तियों से कई किश्तों में लंबी बातचीत की, उनके रहन-सहन, दिनचर्या, कार्य-व्यवहार व रणनीतियों का गहन अध्ययन किया। गरीबी से लड़कर अमीर बनने में सफल हुए इन लोगों में कुछ सामान्य गुण पाये गए। परिणामस्वरूप मैंने इन्हीं सामान्य गुणों पर आधारित नियमों को सूचीबद्ध किया है जो किसी भी व्यक्ति को गरीबी से छुटकारा दिलाने में समर्थ हैं।

इस अध्ययन में यह पाया गया कि इन सभी व्यक्तियों में कम से कम 6 विशेषताएं सामान्य थीं। इनमें पहली विशेषता है, गरीबी के बावजूद छोटी-छोटी बचत करके रुपये जुटाना। अध्ययन में शामिल लोग शुरू से अमीर नहीं थे। वे भी गरीबी और अभावों से परेशान थे, पर उन्होंने नियम से अपनी आय के कुछ पैसे बचाने आरंभ किये और उनकी बचत अंतत: एक छोटे से निवेश में बदल गयी। यानी, पहली शुरुआत छोटी बचत से हुई।

दूसरी विशेषता यह थी कि इनमें से किसी ने भी उस बचत को किसी बैंक के बचत खाते में निट्ठल्ली रखने के बजाए उस धनराशि का व्यापार अथवा संपत्ति में निवेश किया और अपने लिए अतिरिक्त कमाई का ज़रिया बनाया। अध्ययन में शामिल एक व्यक्ति ने अपना रिक्शा खरीदा और नौकरी के बाद सवारियां ढोता रहा, किसी ने मूंगफली की रेहड़ी लगाई तो किसी ने पकौड़ों की रेहड़ी लगाई, किसी ने अपनी बचत से छोटी सी लायब्रेरी बनाई और लोगों को पुस्तकें और पत्रिकाएं किराए पर देनी शुरू कर दीं, किसी ने मधुमक्खियां पालीं, किसी ने मुर्गियां पालीं और किसी ने रेहड़ी-फड़ी के दुकानदारों को माल सप्लाई करने का काम शुरू किया। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि ऐसे सभी लोगों ने किसी एक जगह नौकरी की और अपने खाली समय में कोई काम-धंधा किया। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि गरीबी से अमीरी की यात्रा में सफल हुए लोगों में ऐसे लोग भी हैं जो एक नौकरी के बाद कोई पार्ट-टाइम नौकरी भी करते थे, पर इनमें से ज्यादातर लोगों को नौकरी के साथ व्यवसाय करने वाले लोगों की अपेक्षा अमीरी का सुख कुछ देर से मिला।

इन लोगों में तीसरा गुण यह पाया गया कि वे बढ़ी हुई आय पर ही संतुष्ट नहीं हुए, बल्कि उन्होंने इसके साथ ही शेष समय में अतिरिक्त पढ़ाई की या कोई नया हुनर सीखा और या तो नौकरी में प्रमोशन पाई या अपने नये ज्ञान के बल पर अपने व्यवसाय में विस्तार किया। इससे उनकी आय अपने अन्य साथियों की अपेक्षा ज्यादा तेज़ी से बढ़ी।

चौथा सामान्य गुण यह था कि वे किसी भी समस्या अथवा चुनौती से घबराने के बजाए उसके समाधान के एक से अधिक हल खोजने का प्रयास करते थे और सबसे बेहतर विकल्प को आजमाते थे।

गरीबी से अमीरी की यात्रा में सफल रहे इन लोगों में से कुछ लोग तेजी से अमीर बने, जबकि बहुत से दूसरे लोग अपेक्षाकृत धीमी गति से अमीर बने। इनमें से जो लोग ज़्यादा जल्दी अमीर बने, उनमें एक और खास गुण, यानी पांचवां गुण, यह पाया गया कि वे लोगों को अपने साथ जोड़ने और जोड़े रखने में कुशल थे। वे अपने साथियों के लाभ का ध्यान रखते हुए उनकी निष्ठा जीतते थे और उनसे बेहतर काम लेते थे। इस गुण ने उन्हें नौकरी में प्रमोशन दिलवाई और व्यवसाय में तरक्की। विभिन्न अध्ययनों से यह भी साबित होता है कि जैसे-जैसे आप सफलता की सीढ़िया चढ़ते चलते हैं, वैसे-वैसे तकनीकी योग्यताओं का महत्व कम और कल्पनाशक्ति के प्रयोग से समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने और लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता का महत्व बढ़ता चला जाता है।

इस अध्ययन से यह भी सामने आया कि इन सफल व्यक्तियों का छठा सामान्य गुण यह था कि उन्होंने अपने लिए किसी ऐसी आय का जुगाड़ भी किया जहां उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं थी। किसी ने रिक्शा खुद चलाने के बजाए उसे किसी अन्य को किराए पर दे दिया, किसी ने अतिरिक्त खोली, घर या दूकान खरीदी और किराए पर चढ़ा दी, किसी ने अपने व्यवसाय की एक से अधिक शाखाएं खोलीं और उन शाखाओं का काम किसी जिम्मेदार मैनेजर अथवा भागीदार को सौंपा, किसी ने काम का ठेका उठाकर उसे अन्य लोगों को सौंपा, यानी काम खुद नहीं किया बल्कि काम लेकर उसे दूसरों से करवाया ताकि उनके पास अपने अन्य कामों के लिए समय बचा रहे।

इन छ: सूत्रों की सहायता से जीवन में सफल होना सुनिश्चित हो जाता है। अब यह चुनाव हमें करना है कि हम दूसरों की दया पर निर्भर रहना चाहते हैं या खुद समर्थ होकर अपने साथियों की प्रगति में सहायक होना चाहते हैं। हम राबिनहुड बनकर गरीबों में खैरात बांटना चाहते हैं या गरीबों को समृद्ध बनाकर उनका आत्मसम्मान बढ़ाना चाहते हैं। ***

 
 
 

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